अपनाएं आयुर्वेदिक फास्ट फूड

-नरेन्द्र देवांगन
आधुनिक जीवन शैली के तहत लोग अपने आहार के प्रति उतने सजग नहीं हैं, जिसमें वे भोजन का समय एवं पोषण
मूल्यों का ध्यान रख सकें। परिणामस्वरूप झटपट भोजन (फास्ट फूड) के दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इसमें एसिडिटी,
कब्जियत आदि शामिल हैं। भोजन में महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जैसे:
भोजन पोषण मूल्य वाला हो।
रूचिकर हो।
उससे शरीर की प्राकृतिक क्रियाएं प्रभावित न होती हों।
आहार आपके वातादि प्रकृति के अनुकूल हो।
भोजन करते समय: इसी तरह भोजन करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना भी आवश्यक है:
भोजन के समय हाथों आदि की स्वच्छता का भी ध्यान रखें। भोजन करते समय बोलना या पुस्तक पढ़ना आदि
कार्य न करें।
भोजन के समय उपयुक्त आसन का प्रयोग करना चाहिए। खड़े-खड़े या चलते-चलते भोजन करना पशुवृत्तिवत है।
भोजन के समय चित्त शांत एवं एकाग्र होना चाहिए। इससे एंजाइम्स का स्राव ठीक से होता है।
समय पर भोजन करें। समय से अधिक पूर्व या समय के बाद भोजन करना सामान्य क्षुधा प्रवृत्ति को नष्ट करता
है। इससे अरूचि, एसिडिटी प्रवृत्ति रोग उत्पन्न होते हैं।
आयुर्वेदिक फास्ट फूड: आयुर्वेद में अनेक आहार, व्यंजन का वर्णन है, जिसे हम फास्ट फूड के रूप में प्रयोग कर सकते हैं
या उसे हम आयुर्वेदिक फास्ट फूड कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह फास्ट फूड शरीर को पोषण प्रदान करने के साथ-
साथ स्वास्थ्यवर्धक भी है।
धाना(कॉर्न): धान, जौ आदि को भूनकर धाना बनता है। वर्तमान में ‘केलाग्स कॉर्नफलेक्स‘ इसका एक प्रकार हैं जो मक्के से
निर्मित होता है। आयुर्वेद में धान या जौ से निर्मित धाना अधिक गुणकारी है। इसमें दूध एवं शक्कर मिलाकर सेवन करने
पर यह शरीर के बल को बढ़ाता है। पचने में हल्का व पोषण प्रदान करता है। अतः इसका प्रयोग नाश्ते के रूप में किया
जा सकता है। पोषण के अतिरिक्त यह कंठ, नेत्रा के रोग, उल्टी-दस्त होने पर अच्छे भोजन का विकल्प है। रोग नियंत्राण
के लिए भी इससे मदद मिलती है।
सत्तू: धान, चना, जौ आदि धान्यों को भूनने एवं पीसने पर वह सत्तू कहलाता है। यह फास्ट फूड का अच्छा विकल्प है।
सत्तू में थोड़ी मात्रा में घी एवं शक्कर मिलाकर पानी डालकर पेस्ट बनाकर खाने पर यह तुरंत शरीर में बल प्रदान करता है,
यह सत्तू की विशेषता है। सत्तू में शहद मिलाकर सेवन करने पर मोटापा एवं केवल पानी मिलाकर सेवन करना मधुमेही
रोगी का आदर्श भोजन है। गर्मी में सत्तू का प्रयोग प्यास को भी कम करता है एवं बलदायक है। सत्तू सेवन के भी निर्देश हैं
जिसे जानकर उसका प्रयोग करना चाहिए।
पृथुका(चिवड़ा): चावल, जौ को भिगोकर भून लेने पर यह पृथुका कहलाता है। वर्तमान समय में प्रचलित पोहा भी इसी का
प्रकार है। इसको पानी में भिगोकर दूध एवं शर्करा डालकर सेवन करने पर यह स्निग्ध, मलभेदक एवं वातशामक है।
कुल्माषा(घुघरी): गेहूं, चना, मूंग आदि अन्न को उबालकर उसमें सरसों का तेल डालकर सेंक लंे एवं नमक डालें. यह
कुल्माषा है। यह भी फास्ट फूड का विकल्प है। कुल्माषा गुरू, लघु एवं मल का भेदन करता है। जिन द्रव्यों से यह बनाया
जाता है उस द्रव्य के गुणों से युक्त होता है। जैसे मंूग से बनाने पर पचने में हल्की व उड़द से बनी कुल्माषा गुरू होती
है।
लप्सिका(लप्सी): बारीक गेहूं के आटे को हल्का भून लें व उसमें मात्रानुसार शर्करा एवं दूध डालकर पकाएं। उसे उतारकर
उसमें लौंग चूर्ण, काली मिर्च एवं इलायची चूर्ण डालें, यह लप्सिका है।
पिण्डरी(इडली): पिण्डरी आयुर्वेद में वर्णित है। उड़द एवं मंूग की पिठी बनाकर उसमें नमक, हींग, जीरा व अदरक मिलाकर
पिण्डाकार बनाकर भाप में पकाएं एवं घी में तल लें। इसे सूखा या इमली की चटनी से खाया जाता है। यह बलकारक, क्षुधा
शांत करने वाली, शुक्र बढ़ाने वाली एवं रोचक है।
कुण्डलिनी(जलेबी): मालवा का प्रसिद्ध खाद्य पदार्थ, व्यंजन है। दूध के साथ जलेबी का प्रयोग बलकारक, पोषक एवं तर्पक
है।
इस तरह के आयुर्वेद एवं भारतीय व्यंजन फास्ट फूड का बेहतर विकल्प हैं एवं शरीर के लिए फास्ट फूड की तरह
हानिकारक न होकर लाभदायक होते हैं। (स्वास्थ्य दर्पण)
जब हो कोई संकट की स्थिति
/ मंजु
किसी भी व्यक्ति के जीवन में किसी न किसी मोड़ पर ऐसी कोई भी स्थिति आ सकती है जिसकी परिणति मानसिक
समस्या के लक्षणों में हो। सामान्य शारीरिक रोग भी इस तरह की मानसिक समस्याएं उपजा सकते हैं। सत्तर से अस्सी
प्रतिशत मामलों में शारीरिक तकलीफ के साथ-साथ मानसिक समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं और यह खतरा सब के साथ
कभी न कभी पैदा हो ही सकता है।
मानसिक तनाव की स्थिति में भी यदि व्यक्ति अपना संतुलन बनाये रखना सीख ले तो कोई भी संकट की स्थिति उसे
उद्वेग नहीं दे सकती, अवसाद में नहीं ला सकती।
संकट की स्थिति में खुद को संतुलित व ‘संयत’ रखने के लिये एकान्त में बैठकर खुद से ही कुछ सवाल करें-
त आखिर परेशानी का क्या कारण है? इस समय न तो तकदीर को दोषी ठहरायें, न भाग्य को कि ‘मेरी तो तकदीर ही
खोटी है। यही लिखा है मेरे भाग्य में। मेरा तो जीवन ही व्यर्थ हो गया।’ इसके बजाय अपनी सोच को सार्थकता व
सकारात्मकता की ओर ले जाकर कुछ अपनी भूलों और ‘परेशानी क्यों पैदा हुई’ जैसी ठोस बातों पर अपना ध्यान केंद्रित
करना चाहिये।
यह विचार करना व अंतर करना भी जरूरी है कि परिणाम निश्चित है, मात्रा सम्भावित है या प्रत्याशित है। अक्सर जीवन
में हर दिन जो तमाम बातें, घटनाएं, स्थितियां आती जाती हैं, वे सभी महत्त्वपूर्ण नहीं होती। 80 प्रतिशत बातें तो
महत्त्वहीन ही होती हैं। उन पर ध्यान न देने व अनदेखा करने की आदत पाल लेनी चाहिये। हां, वे गंभीर बातें जो भले ही
15-20 प्रतिशत हों, पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिये।
प्रायः लोग जिस बात को लेकर परेशान व चिन्तित होते हैं, उसका होना ही बहुधा तय नहीं होता। वह मात्रा सम्भावित या
प्रत्याशित ही होती है। वही करना चाहिये जो सहज व सामान्य हो। अपनी दिनचर्या व व्यस्तता निभानी चाहिये ताकि मन
खाली न रहे, ऊल जलूल न सोचे व भावनाएं हावी न हों।
अपनी जानकारी व दिमाग पर चलना ठीक है, कल्पना या भावना पर नहीं। किसी भी तरह की घबराहट के मूल में गलत
तथ्य व विकृत परिकल्पनाएं ही ज्यादातर होती हैं जैसे, ज्यादा काम करने पर व्यक्ति जब थक जाता है तो जीवन से ही
हार सी मान लेता है। सोचता है ‘बेकार है जीवन, इसमें रखा ही क्या है‘‘ पर वास्तव में केवल थकान ही होती है, इससे
ज्यादा और कुछ नहीं जो थोड़ा आराम व पथ्य पा कर ठीक हो जायेगी।
हम पर जो बीत रही है या जैसी स्थिति परिस्थिति से हम दो चार हो रहे हैं, दूसरे भी लगभग उसी रूप में या किसी और
रूप में उसे भुगत चुके होते हैं। दुःख व आवेग, विषाद, तनाव के कारण यह सोचना कि हम ही अकेले हत्भागी हैं जो ऐसी
बीमारी, क्लेश भुगत रहे हैं, गलत है। दुनिया में तमाम भले लोग ऐसी तकलीफ क्या, इससे भी बड़ी-बड़ी मुसीबतें, तनाव व
समस्याएं झेलते हैं पर अपने संयत व्यवहार, सोच व सकारात्मक व्यवहार के कारण उन्हें झेल कर उबर भी जाते हैं।
(स्वास्थ्य दर्पण)
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