अब नेताओं पर भी बिजली का अंकुश: मंत्री-सांसदों को लेना होगा मीटर रिचार्ज, नहीं तो कटेगा कनेक्शन
Madhya Pradesh news: मध्य प्रदेश में अब मंत्री, सांसद, विधायक और सरकारी अधिकारी—किसी को भी बिजली मुफ्त में नहीं मिलेगी। ऊर्जा विभाग ने सख्त निर्देश जारी किए हैं कि हर उपभोक्ता को पहले बिल भरना होगा, तभी बिजली का कनेक्शन चालू रहेगा। यदि बकाया राशि जमा नहीं की जाती, तो किसी भी सरकारी या निजी उपभोक्ता की बिजली काट दी जाएगी। यह कदम राज्य में बिजली बिल की वसूली को तेज करने और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
मंत्रालय से तहसील तक पहुंचेगा मीटर
पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में कदम
राज्य की विद्युत वितरण कंपनियां भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय की आरडीएसएस (Revised Distribution Sector Scheme) योजना के तहत यह कार्य कर रही हैं। इसका लक्ष्य है-पारदर्शी बिलिंग प्रणाली, सटीक मीटर रीडिंग और ऊर्जा लेखांकन में सुधार। इन स्मार्ट मीटरों के आने से विभागीय खर्च और चोरी दोनों पर रोक लगने की उम्मीद है।
सरकारी भवनों में लग रहे स्मार्ट मीटर
अधिकारियों के अनुसार, अब तक प्रदेश के 45,191 सरकारी कार्यालयों में स्मार्ट मीटर लग चुके हैं, जिनमें से 18,177 कनेक्शनों पर प्रीपेड बिलिंग शुरू भी हो गई है। इससे हर कार्यालय को अपने उपयोग के अनुसार अग्रिम भुगतान कर रिचार्ज करवाना अनिवार्य होगा। मुख्यमंत्री निवास से लेकर पंचायत भवन तक, सबको अब बिजली के हर यूनिट का हिसाब देना होगा।
55 लाख मीटर लगाने का महाअभियान
राज्य में कुल 55 लाख स्मार्ट मीटर लगाए जाने हैं, जिनमें घरेलू उपभोक्ता भी शामिल होंगे। प्रत्येक मीटर की कीमत 10 हजार रुपये तक है और इस अभियान पर करीब 15 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। यानी अब बिजली का उपभोग मोबाइल के रिचार्ज की तरह ही होगा-पहले भुगतान, फिर सप्लाई।
नगर निकायों की पुरानी देनदारियां
प्रदेश के कुल 413 नगर निकायों में से कई निकायों ने छह-छह महीने से बिजली बिल नहीं भरा है। कुछ ने तो पूरे साल का बकाया रखा है। वितरण कंपनियों को बार-बार नोटिस जारी करने की नौबत आ रही थी। अब नए नियम के तहत कोई भी निकाय समय पर भुगतान नहीं करेगा तो उसका कनेक्शन काटा जाएगा।
पंचायतों पर भी सख्ती
पंचायतें भी इस सख्ती के दायरे में आई हैं। नगरीय विकास एवं आवास विभाग, महिला बाल विकास विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग पर ही करीब 800 करोड़ रुपये का बकाया है। सभी विभागों को मिलाकर यह रकम 1300 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अग्रिम भुगतान ही ऊर्जा आपूर्ति की शर्त होगी—चाहे दफ्तर मंत्री का हो या सरपंच का।
