सीपी राधाकृष्णन ने राज्यसभा में नियम 267 की सीमा पर दी सफाई, ट्रेजरी बेंच ने रखे अपने विचार
नई दिल्ली। राज्यसभा में नियम 267 के उपयोग और उसके दायरे को लेकर गुरुवार को लंबी और गहन चर्चा देखने को मिली। यह चर्चा तब शुरू हुई जब सीपी राधाकृष्णन ने सदन को सूचित किया कि उन्हें दो अलग-अलग मुद्दों पर नियम 267 के तहत नोटिस प्राप्त हुए हैं। सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि कई सदस्यों की मांग पर उन्होंने इस नियम की वर्तमान प्रथा की समीक्षा करने और एक स्पष्ट व विचारशील निर्णय देने का आश्वासन दिया था।
उन्होंने याद दिलाया कि नियम 267 का मौजूदा स्वरूप वर्ष 2000 में संशोधित किया गया था। तब के राज्यसभा चेयरमैन कृष्ण कांत की अध्यक्षता वाली समिति में डॉ. मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू और फाली नरिमन जैसे वरिष्ठ सदस्यों ने यह संशोधन सुझाए थे। समिति ने पाया था कि नियम का दुरुपयोग हो रहा है और इसके नाम पर ऐसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं जो सूचीबद्ध नहीं थे या जिन पर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ था। इसलिए सुझाव दिया गया कि इसका इस्तेमाल सिर्फ दिन के कार्य से जुड़े मामलों तक सीमित किया जाए। सदन ने यह संशोधन 15 मई 2000 को मंजूर किया था। चेयरमैन राधाकृष्णन ने आंकड़े भी पेश किए। उन्होंने बताया कि 1988 से 2000 के बीच नियम 267 सिर्फ तीन बार लागू हुआ। इनमें से केवल दो बार इसका पूरी तरह पालन हुआ। 2000 के संशोधन के बाद, बिना सर्वसम्मति के नियम 267 पर कोई चर्चा नहीं हुई।
करीब चार दशक में सिर्फ आठ बार सर्वसम्मति से चर्चा हुई है। उन्होंने कहा, "यह तरीका बेहद दुर्लभ परिस्थितियों में ही इस्तेमाल किया गया है।" विपक्ष पर तंज कसते हुए जेपी नड्डा ने कहा कि सरकार किसी भी चर्चा से नहीं भागती। उन्होंने कहा, "आपने जो भी मांगा, हमने हमेशा चर्चा का समय दिया है।" नड्डा ने याद दिलाया कि पिछली सत्र में विपक्ष द्वारा उठाए गए कई मुद्दों पर विस्तृत चर्चा कराई गई थी। उन्होंने यह भी बताया कि वंदे मातरम् और एसआईआर जैसे मुद्दों पर सभी दलों की बैठक में सहमति बनी है और अगले सप्ताह इन पर चर्चा होगी।
