बिहार चुनाव में किंगमेकर ईबीसी पर राहुल-तेजस्वी की रणनीति: 2.7 करोड़ वोटरों पर नजर

Bihar News: बिहार में ईबीसी (अति-पिछड़ा वर्ग) आरक्षण को लेकर राजनीति लगातार गर्माई हुई है। महागठबंधन ईबीसी के लिए 30% आरक्षण का वादा कर रहा है, जबकि एनडीए सरकार ने अपने काम और कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ा रखा है। राहुल गांधी ईबीसी वोटरों को लुभाने के लिए न्याय का कार्ड खेल रहे हैं, क्योंकि यह वोट बैंक चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने दी नई चाल
राहुल-तेजस्वी का रणनीतिक फोकस
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव का फोकस 90% जनसंख्या (ओबीसी, ईबीसी, अनुसूचित जाति, मुसलमान) पर है, जो नरेन्द्र मोदी के वोट बैंक के मुकाबले निर्णायक साबित हो सकता है। महागठबंधन की रणनीति यह भी है कि कांग्रेस को राजद की छाया से बाहर निकालने के लिए नया जनाधार तैयार किया जाए।
इंटरनेट मीडिया और राजनीतिक संदेश
सोशल मीडिया पर कांग्रेस समर्थक इसे ईबीसी एकता के रूप में प्रचारित कर रहे हैं, जबकि एनडीए इसे नकारात्मक राजनीति के रूप में देख रहा है। अगर ईबीसी वोट बंटते हैं, तो महागठबंधन को फायदा होगा। वहीं नीतीश कुमार का पुराना प्रभाव और कल्याणकारी योजनाएं चुनौती पेश करती हैं।
बेरोजगारी और पलायन को मुद्दा बनाया
महागठबंधन ईबीसी के एक हिस्से में बेरोजगारी, पलायन और आरक्षण के मुद्दों को उठा रहा है। राहुल गांधी सोशल न्याय, रोजगार और वोट सुरक्षा के कार्ड के जरिए ईबीसी समर्थन जुटा रहे हैं। इस वर्ष राहुल बिहार में पांच बार आ चुके हैं, और हर यात्रा में ईबीसी, ओबीसी, अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक वर्ग पर फोकस किया।
ईबीसी का वोट बैंक और पिछली जीत-हार की समीक्षा
2005 और 2010 में एनडीए को ईबीसी का भारी समर्थन मिला। 2010 में जदयू ने 115 सीटें जीतीं, जिनमें ईबीसी प्रभाव वाली सीटें अधिक थीं। 2015 में नीतीश महागठबंधन में आए और ईबीसी नीतियों ने 178 सीटें दिलाईं। 2020 में एनडीए ने 125 सीटें जीतीं, लेकिन ईबीसी वोट बंटा। 243 विधानसभा सीटों में लगभग 120 सीटों पर ईबीसी वोट 20-40% तक हैं, जो जीत-हार में निर्णायक हैं।
ईबीसी की ऐतिहासिक पहचान और राजनीतिक महत्व
1970 के दशक में कर्पूरी ठाकुर ने मुंगेरी लाल आयोग के हवाले से ईबीसी को पहचान दी और 12% आरक्षण लागू किया। नीतीश कुमार ने 2005 से ईबीसी को संगठित किया, वोट बैंक बनाया और विशेष योजनाएं शुरू कीं। अब राहुल गांधी इस बड़े वोट बैंक को महागठबंधन की ओर मोड़ने के लिए आक्रामक रणनीति अपना रहे हैं।