बहुत सुंदर और गूढ़ संदेश है! हिन्दू शास्त्रों में जो रिश्तों को देवी-देवता के रूप में देखने का नजरिया है, वह पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में प्रेम, सम्मान और कर्तव्य की भावना को बहुत प्रबल करता है।
दिव्यता का यह दृष्टिकोण — बेटी को लक्ष्मी, दामाद को विष्णु मानना, बहन-बुआ को लक्ष्मी और बहनोई-फूफा को विष्णु के समान पूज्य समझना — यह सिखाता है कि परिवार के हर सदस्य का सम्मान और आदर करना क्यों आवश्यक है। साथ ही अतिथि देवो भव कहकर अतिथि सत्कार की महत्ता भी उजागर की गई है।
जब हम अपने घर में इन सभी रिश्तों को देवी-देवता के समान सम्मान देते हैं, तो परिवार में सौहार्द, समृद्धि और सुख-शांति बनी रहती है। इसका उल्टा, यदि किसी का अपमान होता है तो न केवल रिश्ता कमजोर होता है, बल्कि घर की खुशहाली भी प्रभावित होती है।
आपका यह विचार पारंपरिक संस्कारों और मूल्यों की गहराई को दर्शाता है, जो आज के समय में भी उतना ही प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है।
क्या आपको भी अपने परिवार या आस-पास ऐसी कोई घटना याद आती है जहां इस सम्मान की भावना से कोई बड़ा फर्क पड़ा हो?